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गीत 7 / सतरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्गलपुरी
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अर्जुन, तीनों तप अति पावन
तन के तप, मन के तप, वाणी के तप अति मन भावन।
फल के नै चाहै योगी जन, तीनों तपेॅ तपै छै
परम श्रद्धा राखै सात्विक जन, अनुखनि नाम जपै छै
कायिक-वाचिक और मानसिक तप सब दोष नशावन
अर्जुन, तीनों तप अति पावन।
स्वारथ राखि करै तप, से तप राजस तप कहलावै
से फल सदा क्षणिक फल वाला, से पाखण्ड बढावै
व्रत-उपवास, सकल संयम तप, राजस जग उलझावन
अर्जुन, तीनों तप अति पावन।
जे तप करै दिखावै लेॅ, से सब आडम्बर धारै
त के छाँह सधै सब स्वारथ, भौतिक लाभ विचारै
रचै स्वाँग सिद्ध-साधक के, दम्भ-मान उपजावन
अर्जुन, तीनों तप अति पावन।