भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत 7 / सतरहवां अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:47, 18 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=विजेता मुद्‍गलपुरी |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अर्जुन, तीनों तप अति पावन
तन के तप, मन के तप, वाणी के तप अति मन भावन।

फल के नै चाहै योगी जन, तीनों तपेॅ तपै छै
परम श्रद्धा राखै सात्विक जन, अनुखनि नाम जपै छै
कायिक-वाचिक और मानसिक तप सब दोष नशावन
अर्जुन, तीनों तप अति पावन।

स्वारथ राखि करै तप, से तप राजस तप कहलावै
से फल सदा क्षणिक फल वाला, से पाखण्ड बढावै
व्रत-उपवास, सकल संयम तप, राजस जग उलझावन
अर्जुन, तीनों तप अति पावन।

जे तप करै दिखावै लेॅ, से सब आडम्बर धारै
त के छाँह सधै सब स्वारथ, भौतिक लाभ विचारै
रचै स्वाँग सिद्ध-साधक के, दम्भ-मान उपजावन
अर्जुन, तीनों तप अति पावन।