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गीत 8 / आठवाँ अध्याय / अंगिका गीत गीता / विजेता मुद्‍गलपुरी

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पूर्ण चराचर, ब्रह्मा के दिन के संग प्रकट हुऐ छै
और रात होतें, सृष्टि ब्रह्मा में लीन हुऐ छै।

व्यक्त और अव्यक्त जगत
छिक ब्रह्मा के उपजैलोॅ,
सूक्ष्म प्रकृति स्थूल रूप में
उनके परिणत कैलोॅ,
प्राणी अपनोॅ कर्म के चलते, तैसन देह धरै छै।

एक हजार दिव्य युगोॅ पर
निशाकाल आवै छै,
सकल भूत-गण
सूक्ष्म अवस्था के तखनी पावै छै,
प्रकटै प्राणी वहेॅ सूक्ष्म से, हुऐ सूक्ष्म में लय छै।

वहेॅ भूत समुदाय प्रकटि कै
प्रकृति अधीन हुऐ छै,
निशा काल में वहेॅ सूक्ष्म में
फिर से लीन हुऐ छै,
पूर्ण-भूत फेरो दिन होते ही आवी प्रकटै छै।

कल्प-कल्प तक, विविध देह में
वहेॅ जीव प्रकटै छै,
जीव, लाख चौरासी योनि में
ऐसौ भटकै छै,
फिर-फिर जनम, मरण फिर-फिर से, कुछ नै नया हुऐ छै।

जब तब जीव न पावै हमरा
तब तक ऐसोॅ भटकै,
बेर-बेर माता के
जठरानल में उल्टा लटकै,
जे हमरा पावै प्राणी ऊ फिर नै देह धरै छै
पूर्ण चराचर ब्रह्मा के दिन के संग प्रकट हुऐ छै।