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गीत अपना खो गया है / उर्मिल सत्यभूषण

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गीत अपना खो गया है
हाय! यह क्या हो गया है
कल्पना का सत्य कितना
था सुनहला, था रंगीला
क्षणिक भावावेश होता था
अलौकिक, था छबीला
व्यस्तता में चरम क्षण वो
आज सपना हो गया है
भावना का ज्वार आंखों से
अश्रु की राह ढलता
वेदना उद्गार में था
एक मीठा गीत पलता
वह संवेदनशील उर क्यों
नींद मीठी खो गया है
घंटियाँ आवाज़ देतीं,
पर्वतों से गूँज आती
वह पुरानी प्यार निगड़ित
मस्तियाँ फिर फिर बुलाती
मेरा सार्वभौम सुन्दर नेह
शिलित क्यों हो गया है
मन विहग उन्मुक्त नम में
पंख फैलाये उड़ता जाता
सर्वत्र ही निज स्नेह सम्पुट
गीत की मणियां लुटाता
हाय! मन का कीर
अपने में ही बंदी हो गया है।