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गीत कैसा पढ़ूँ कुछ इशारा करो / विशाल समर्पित

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मुस्कुरा कर मुझे मत निहारा करो
गीत कैसा पढ़ूँ कुछ इशारा करो

यामिनी का अभी तो प्रथम दौर है
चाँद तारे गगन में न आए हुए
फूल हँसते रहे आज जो डाल पर
देखता हूँ सभी सिर झुकाए हुए
रातरानी कभी भी खिले मत खिले
भाव सुंदर कभी भी मिले मत मिले
मन मिलन का तुम्हारा करे जब प्रिये
कंगनो की खनक से पुकारा करो
गीत कैसा पढ़ूँ कुछ इशारा करो
मुस्कुरा कर मुझे मत निहारा करो

वेदना की कहानी लिखी हो जहाँ
ज़िंदगी भर वही पृष्ठ मोड़े रहें
दुःख तुम्हारे कभी पास आए नहीं
सुख सदा द्वार पर हाथ जोड़े रहें
नेह झरना बनूँ मैं निरंतर झरूँ
इस धरा के सभी सुख समर्पित करूँ
स्वप्न तक में कभी रूठना मत प्रिये
रूठकर तुम स्वयं को न हारा करो
गीत कैसा पढ़ूँ कुछ इशारा करो
मुस्कुरा कर मुझे मत निहारा करो

मुस्कुरा कर झुका लो नयन बाबरे
गीत का हार स्वर्णिम पिन्हा दूँ तुम्हे
ज़िंदगी भर अगर साथ तुम दे सको
हमसफर आयुभर का बना लूँ तुम्हें
दिव्य-सी लग रहीं हैं कुँवारी लटें
मुग्ध करतीं मुझे ये तुम्हारी लटें
नेह के पाश में बाँधती हैं प्रिये
स्याह बिखरी लटें मत सँवारा करो
गीत कैसा पढ़ूँ कुछ इशारा करो
मुस्कुरा कर मुझे मत निहारा करो