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गुमराह कह के पहले जो मुझ से खफ़ा हुए / 'हफ़ीज़' बनारसी
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गुमराह कह के पहले जो मुझ से खफ़ा हुए
आखिर वह मेरे नक़शे-क़दम पर फ़िदा हुए
अब तक तो ज़िन्दगी से तआरुफ़ न था कोई
तुम से मिले तो ज़ीस्त से भी आशना हुए
मेरी नज़र ने तुमको जमाल आशना किया
मुझ को दुआएँ दो कि तुम इक आइना हुए
सुनता हूँ इक मुक़ामे-ज़ियारत है आजकल
वह ज़िन्दगी का मोड़ जहाँ हम जुदा हुए
क्या होगा इस से बढ़ के कोई रब्ते-बाह्मी
मंज़िल हमारी वह तो ह्म उनका पता हुए
कब ज़िन्दगी ने हमको नवाज़ा नहीं 'हफ़ीज़'
कब हम पर बाबे-लुत्फ़-ओ-इनायत न वा हुए