भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गुरु पद लाग जगो मन मेरे / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:38, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गुरु पद लाग जगो मन मेरे।
नाम अखंड धाम पर पूरन दियो लखाय परम गत पेरे।
दुख दालिद्र भगाय पलक छिन में मेटे सकल अंधेरे।
जोग जुक्त कर मुक्त लखाई जान अनाथ नाथ तब हेरे।
जूड़ीराम सरन सतगुरु के देव भक्त पर दान घनेरे।