भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गूँज! / गोकुलचंद शर्मा

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:27, 11 अगस्त 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोकुलचंद शर्मा |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक कुएँ के ऊँचे तट पर,
गाता था लेटा चरवाहा!
उठी तरंग किया मुँह नीचे,
बोला हो-हो, हा-हा हा-हा!

भरकर यह आवाज़ कुएँ में,
लौटी ज्यों ही त्यों ही ओ हो-
हो-हो हा-हा हा-हा हो-हो,
हो-हो हा-हा हा-हा हो-हो!

वह उजड्ड बालक तब डरकर
भागा घर को मुट्ठी बाँधे
आँसू आँखों में भर आए
और रहा था चुप्पी साधे।