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गेसुओं की बरहमी अच्छी लगे / 'हफ़ीज़' बनारसी

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गेसुओं की बरहमी अच्छी लगे
ये हसीं आवारगी अच्छी लगे

उसके होंटों की हंसी अच्छी लगे
अध खिली-सी वह कली अच्छी लगे

प्यास के तपते हुए सहराओं में
ओस की इक बूँद भी अच्छी लगे

हमनशीं है जब से वह जान-ए-ग़ज़ल
दिन भी अच्छा रात भी अच्छी लगे

खूब है हरचंद राहे-रास्ती
गाहे गाहे कजरवी अच्छी लगे

लोग तो रंगीनियों पर हैं फ़िदा
मुझको तेरी सादगी अच्छी लगे

धूप जाड़े की मज़ा दे जाए है
चाँदनी बरसात की अच्छी लगे

उड़ गए सब रंग उस तस्वीर के
फिर भी आँखों को वही अच्छी लगे

ग़ैर के महलों में जी लगता नहीं
अपनी टूटी झोंपड़ी अच्छी लगे

मुद्दतों गंभीर रह लेने के बाद
कुछ हंसी कुछ दिल लगी अच्छी लगे

उसका प्यार, उसकी वफ़ा, उसके सितम
हर अदा उस शोख़ की अच्छी लगे

 सू-ए-काबा किस लिए जाये 'हफ़ीज़'
 जिस को काशी की गली अच्छी लगे