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गौरव गान / तारादत्त निर्विरोध

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कोटि-कोटि कंठों से गूँजे तेरा गौरव गान,
जय जय भारत देश महान ।।

ऊँचा पाल हिमालय तेरा, पाँव धो रहा सागर,
गंगा-जमुना जैसी नदियाँ संगम करती आकर ।
पूरब-पश्चिम-उत्तर-दक्षिण चहुं दिशाएँ एक समान,
जय जय भारत देश महान ।।

देवि, देवता, संत-धर्मगुरु, ध्यानी-ज्ञानी मानी,
अपने प्रणों को देकर मिटने वाले मुक्ति युद्ध सेनानी ।
उनके सत्कर्मों का जगत भर में हुआ बखान,
जय जय भारत देश महान ।।

तेरी रज मेम खेल-कूदकर बड़े हुए हम सारे,
तेरी ख़ातिर जिए-मरे तो बंधन कटे हमारे ।
संकल्पों की ध्वजा हमारी समता का अभियान ।
जय जय भारत देश महान ।।