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घर / वार्सन शियर / राजेश चन्द्र

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घर नहीं छोड़ता कोई आदमी
जब तक कि घर किसी शार्क का जबड़ा न लगे
तुम, बस, भाग पड़ते हो सीमा की ओर
जब पाते हो कि समूचा शहर ही
भाग रहा है सिर पर पाँव लिए।

तुम्हारे पड़ोसी भाग रहे हैं तुमसे भी तेज़
साँसें लहूलुहान अटकती हैं गले में उनके
वह लड़का जिसके साथ स्कूल जाया करती थीं तुम
जिसने लिया था सिहरा देने वाला चुम्बन तुम्हारा
टिन के उस पुराने कारख़ाने के पीछे...
उसने थाम ली है हाथों में ख़ुद से लम्बी बन्दूक
तुम बस भाग ही सकते हो
घर जब तैयार न हो रहने देने को तुम्हें।

कोई घर नहीं छोड़ता
जब तक कि घर पीछे न पड़ा हो तुम्हारे
पाँव के नीचे शोले
गर्म लहू तुम्हारे पेट में
तुमने ख़्वाब में भी कहाँ सोचा था
कि कभी यह भी करना पड़ सकता है
अन्त तक बनी रहती हैं आशँकाएँ
दग्ध छुरे की तुम्हारे गले पर
और तब भी जब ले जाते हो छिपाते हुए
अपनी साँसों के भीतर अपने गान
चिन्दी-चिन्दी करते अपना पासपोर्ट
किसी हवाई अड्डे के शौचालय में
काग़ज़ात भरे मुँह से चीत्कार करते
यह पक्का करते हुए कि अब कभी
नहीं जा सकते तुम वापस लौट कर।

तुम्हें समझना ही होगा,
कि कोई अपने जिगर के टुकड़ों को
यों ही नहीं धकेल देता किसी नाव में,
जब तक कि पानी अधिक सुरक्षित न हो
पाँवों के नीचे की ज़मीन से
कोई भी झुलसाना नहीं चाहता अपनी हथेलियों को
रेलों के भीतर
गाड़ियों के तल में
कोई नहीं बिताना चाहता
अपने रात और दिन किसी ट्रक के पेट में
अखबारों पर खाना खाते मीलों लम्बे सफ़र में
इसका मतलब यह है कि
यह महज एक सफ़र नहीं है।

कोई भी रेंगना नहीं चाहता बाड़ों के नीचे से
मार खाना कोई नहीं चाहता
कोई नहीं चाहता कि तरस खाया जाए उस पर

शरणार्थी शिविर किसी का चुनाव नहीं होते
कोड़े किसी को भी अच्छे नहीं लगते
यह ढूँढ़ते हुए कि तुम्हारे जिस्म में
और कहाँ-कहाँ दर्द बाक़ी है
जेल किसी को अच्छी नहीं लगती
जब तक कि वे सुरक्षित न लगें
जलते हुए किसी शहर की बनिस्बत
और जेल अगर रात में शरण देती हो
तो खचाखच भरे ट्रकों से तो बेहतर ही है
जहाँ हर चेहरा है तुम्हारे पिता जैसा
कोई भी इसे सह नहीं सकता
कोई भी पचा नहीं सकता इसे
कोई भी चमड़ी इतनी सख़्त नहीं होती

अपना नाम और अपने परिवार खोकर
साल भर, दो साल या दस साल के लिए
ढूँढ़ते हुए कोई पनाह या वास-स्थान
नंग-धड़ंग भटकते हुए
हर कहीं रास्ते में आ जाती हैं जेलें...
और अगर बच गए ज़िन्दा कहीं,
तो किन शब्दों में सत्कार होता है

दफ़ा हो जाओ
अपने घर जाओ, अश्वेतो
शरणार्थियो
गन्दे आप्रवासियो
इन आश्रय ढूँढ़ने वालों ने
चूस लिया है हमारे मुल्क़ को
ये कंगले और हब्शी
जिनसे एक अजीब-सी गन्ध आती है
वहशी
उन्होंने रौंद डाला अपने मुल्क को
और अब वे रौंदना चाहते हैं हमें भी
बदशक़्लो
समेट लो अपना पिछवाड़ा यहाँ से
क्योंकि घूँसा उससे नरम शायद ही हो
जितने से टूट सकता है अंग कोई भी

क्या ये बोल अधिक नरम हैं
उन चौदह लोगों की जान से
जो फँसे हैं तुम्हारी टाँगों की गिरफ़्त में
या कि अपमान को निगलना अधिक आसान है
बनिस्बत रोड़े-पत्थर के
हड्डियों की बनिस्बत
तुम्हारे बच्चे के जिस्म की बनिस्बत
जो बँटा हुआ है टुकड़ों में

मैं घर जाना चाहती हूँ
लेकिन घर तो जैसे किसी शार्क का जबड़ा है
बन्दूक की नाल है घर
और कोई भी तब तक घर नहीं छोड़ता
जब तक घर खदेड़ नहीं आता तुम्हें
समन्दर के आखि़री किनारों तक
जब तक नहीं कह देता घर
कि अपने पाँवों की रफ़्तार तेज़ करो
छोड़ कर भागो अपने कपड़े-लत्ते
घिसटते हुए पार करो चाहे रेगिस्तान को
महासागरों पर उतराओ
डूब जाओ
बचो
भूखे मरो
भीख माँगो
भूल जाओ मान-सम्मान को
तुम्हारा ज़िन्दा रहना ही सबसे ज़्यादा ज़रूरी है

कोई भी घर नहीं छोड़ता जब तक
घर कानों में नहीं कहता हाँफती आवाज़ में —
जाओ,
दूर हट जाओ मुझसे फ़ौरन
मुझे नहीं मालूम कि क्या बन गया हूँ मैं
लेकिन इतना मुझे मालूम है कि
दुनिया का कोई भी किनारा
सुरक्षित ही होगा यहाँ से !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : राजेश चन्द्र