भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घर की मांडण बेटी अमुक बाई दीनी / निमाड़ी

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:03, 21 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

घर की मांडण बेटी अमुक बाई दीनी,
तवंऽ जाई समझ्या दयालजी।
आला नीळा बाँस की बाँसरी, वो भी बाजती जाय,
अमुक भाई की बईण छे लाड़ली, वो भी सासरऽ जाय,
पछा फिरी, पछा फिरी लाड़ीबाई,
पिताजी खऽ देवो आशीस।
खाजो पीजो पिताजी, राज करजो,
जिवजो ते करोड़ बरीस।।
छोड्यो छे मायको माहिरो, छोड्यो पिताजी को लाड़
छोड़ी छे भाई केरी भावटी, छोड्यो फुतळयारो ख्याल।
छोड्यो छे सई करो सईपणो,
लाग्या दुल्लवजी का साथ।