भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

घातक खल की मित्रता / त्रिलोक सिंह ठकुरेला

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:21, 6 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिलोक सिंह ठकुरेला |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घातक खल की मित्रता, जहर पराई नारि।
विष से बुझी कटार हो, सिर से ऊपर वारि॥
सिर से ऊपर वारि, गाँव से वैर ठना हो।
कर लेकर तलवार, सामने शत्रु तना हो।
'ठकुरेला' कविराय, अभागा है वह जातक।
स्वजन ठान लें वैर, और बन जायें घातक॥