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चंदूलाल कटनीवाले / हरिओम राजोरिया

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इस क़स्बे में उनका आखिरी पड़ाव था
वे सरकारी खर्च पर कबीर को गाने आए थे
सरकार की तरफ़ से थी व्यवस्था उनकी
एस० डी० एम० ने तहसीलदार से कहा
तहसीलदार ने गिरदावर से
गिरदावर ने पटवारियों से
पटवारियों ने दिलवा दिया था उन्हें माइक
स्कूल के हॉल में कुर्सियाँ पहले से पड़ी थीं
ताँगे में ऐलान हुआ था सरकारी ढंग का
जिसमे चंदूलाल कटनीवाले से ज़्यादा
सरकार के संस्कृति विभाग का ज़िक्र हुआ
इतना सब होने के बाद चंदूलाल को सुनने
आए पचासेक लोग
 
आर्गन पर एक लड़का बैठा था
जिसका चेहरा बहुत सुंदर था
अपनी पोलियोग्रस्त टांगों को उसने
सफ़ाई से छुपा लिया था आर्गन के उस तरफ़
और बैसाखियाँ सरका दी थीं परेड के पीछे
तबलावादक ऎसा जान पड़ता था
जैसे किसी ध्वस्त मकान के मलबे में से
अभी निकलकर आया हो बाहर
उसे मुस्कराने का कोई अभ्यास नहीं था
पर वह मुस्कराए जा रहा था लगातार
चंदूलाल तनकर बैठे थे हारमोनियम लिए
आठ घड़ी किया शाल पड़ा था उनके कन्धों पर
 

गाने को तत्पर थे चंदूलाल
पर जुट नहीं रहे थे उतने लोग
उनके झक सफ़ेद कपडों में
चुपके से आकर दुबक गई थी उदासी
बेमन से गाने को हुए ही थे चंदूलाल
इतने में अचानक आ गए अपर साहब
अपर साहब को आता देख
खड़े हो गए श्रोता
खड़ा हो गया सरकारी तंत्र
चंदूलाल के गले में अटक गए कबीर भी
खड़े हो गए चंदूलाल के साथ ।