भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चढ़ा हूँ मैं गुमनाम उन सीढियों तक / महावीर उत्तरांचली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:16, 12 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महावीर उत्तरांचली |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चढ़ा हूँ मै गुमनाम उन सीढियों तक
मिरा ज़िक्र होगा कई पीढ़ियों तक

ये बदनाम क़िस्से, मिरी ज़िंदगी को
नया रंग देंगे, कई पीढ़ियों तक

ज़मा शायरी उम्रभर की है पूंजी
ये दौलत ही रह जाएगी पीढ़ियों तक

"महावीर" क्यों मौत का है तुम्हे ग़म
ग़ज़ल बनके जीना है अब पीढ़ियों तक