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चल भइया चल भइया बढ़ चल / दीपक शर्मा 'दीप'
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चल भइया चल भइया बढ़ चल
राह न ताक कन्हइया बढ़ चल।
आन्ही-पानी सब रुकि जइहैं
लाठी लइ के रहिया बढ़ चल...
चल भइया चल भइया बढ़ चल।
बाट अन्हेर न सब दिन रहिहै
बादर विपदा के छटि जइहै
घाम देखि मत डर रे मनवाँ
छाह लिए गलबहियाँ बढ़ चल
चल भइया चल भइया बढ़ चल।
देव-देव रटि पितर मनऽऊले
सुरूज के लोटा अचवऽऊले
तऊनो पर रोटी ना पऽऊले
छोड़-छाड़ि ई लहिया बढ़ चल।
चल भइया चल भइया बढ़ चल।
नदिया तीरे दिवस बितावत
घूमि घूमि के अन्न जुटावत
ताल बजावत नाचत गावत
आतम तत्व के गहिया बढ़ चल...
चल भइया चल भइया बढ़ चल