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चलती है हवा / सुरेश ऋतुपर्ण

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चलती है हवा तो हो जाती है बरसात
पानी की बूँदों की तरह
पत्तियों पर पत्तियाँ झर रहीं हैं
चुपचाप !
थर-थर काँपती घाटी
बेसुध हो, झील में
नहा रही है
पानी से उठती धुंध ने पर
ढक दी है उसकी लाज !

चलती है हवा तो सिहर उठता है
सिल्क के रंगीन दुपट्टे की तरह
नदी का जल !

आसमान पर छाए हैं
उचक्के चोर बादल
नदी में उतर
अपने सफेद झोलों में
जल्दी-जल्दी भर रहे हैं
बेशुमार रंग !

बसंती फूलों पर
मरने वालों का कौन समझाए,
पतझरी पत्तियों की नश्वरता में
छिपी है कैसी अमरता !