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चलना जरा सम्भल के पल्लू ना सरक जाये / कबीर शुक्ला
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चलना ज़रा सम्भल के पल्लू ना सरक ना जाये।
दिल बहका है पहले से नजर भी बहक ना जाये।
दिल में हैं फूल कैद जाने कितने अरमानों के मेरे,
छूना ज़रा सम्भल के कोई कली महक ना जाये।
भीगी बालों की लटें और उफ्फ ये अंगड़ाइयाँ,
देख तौबा तेरी चाल सूरज राहें भटक ना जाये।
ऐ मेरे रश्क-ए-आइना तू ना होना कभी रूबरू,
देख हुस्नो-शबाब तेरा आइना चटक ना जाये।
पलट के देखा उसने राह में मैने नजरें फेर ली,
मिले नजर से नजर और सोला भड़क ना जाये।
कल वह गुजरी गली से मेरे आँधी ही चल पड़ी,
कनातें गिरा दिया कहीं झूमर खनक ना जाये।
खुदा बचाये तेरी इस कातिल नजर से नादाँ को,
सुन कोयल-सी बोली 'कबीरा' बहक ना जाये।