भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चलो मिल के गायें / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:57, 20 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चलो मिल के गायें
दो आंसू बहायें
गले मिल के रोयें
ज़रा खुद में खोयें
कि ग़म भूल जायें
चलो मिलके रोये
हां छेड़े तराना
वो नग़मा पुराना
हमीं डूब जायें
कि ग़म भूल जायें
कंधों पे सर हो
नयन तर ब तर हो
ये लब मुस्कुरायें
चलो मिल के गायें
अकेले हैं हम-तुम
मगर क्यों है गुम-सुम
चलो खिलखिलायें
दो आंसू बहायें।