भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद उस देस में निकला कि नहीं / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:46, 1 अप्रैल 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चाँद उस देस में निकला कि नहीं
जाने वो आज भी सोया कि नहीं

भीड़ में खोया हुआ बच्चा था
उसने खुद को अभी ढूँढा कि नहीं

मुझको तकमील समझने वाला
अपने मैयार में बदला कि नहीं

गुनगुनाते हुए लम्हों में उसे
ध्यान मेरा कभी आया कि नहीं

बंद कमरे में कभी मेरी तरह
शाम के वक़्त वो रोया कि नहीं