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चाँदनी आग बरसाने लगी है। / पल्लवी मिश्रा

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चाँदनी आग बरसाने लगी है।
फिर तेरी याद मुझको आने लगी हैं।

कलियों के पलकों पे शबनम की बूँदें,
दास्तान-ए-मुहब्बत सुनाने लगी है।

तन्हा तेरा दिल भी जला होगा शायद,
रौशनी में अमावस नहाने लगी है।

शायद हवा तुझे छूकर है आई,
गुलशन में कली शरमाने लगी है।

बेखुदी में नश्तर चलाया करो न,
हर बार दिल के निशाने लगी है।

पतझड़ के गये तुम सावन में जो आए,
हर धड़कन मेरी गुनगुनाने लगी है।