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चार छोटी कविताएँ / इमरोज़

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1

हाथ में पकड़ा फूल
चुपचाप कह सकता है
कि मैं अमन के लिए हूँ
पर हाथ में पकड़ी तलवार
बोलकर भी नहीं कह सकती
कि मैं अमन के लिए हूँ...

2

आसमान पर भले ही
आसमान जितना लिखा हो
कि ज़िन्दगी दु:ख है
तो भी
धरती पर आदमी
अपने बराबर तो लिख ही सकता है
कि ज़िन्दगी सुख भी है...

3

मैं रंगों के संग खेलता
रंग मेरे संग खेलते
रंगों के संग खेलता-खेलता
मैं इक रंग हो गया
कुछ बनने, कुछ न बनने से
बेफिक्र, बेपरवाह...

4

बिखरने के लिए लोग ही लोग
पर एक होने के लिए
एक भी मुश्किल...
दरख़्त पंछियों को जन्म नहीं देते
पर पंछियों को घर देते हैं...

मूल पंजाबी से अनुवाद : सुभाष नीरव