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चीख़ है मगर कहीं भी कान नहीं है / प्रमोद रामावत ’प्रमोद’

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चीख़ है मगर कहीं भी कान नहीं है ।
जिस्म करोड़ों है मगर जान नहीं है ।
 
उज्जवल भविष्य भी है, उजला अतीत भी,
मेरे वतन का सिर्फ़ वर्तमान नहीं है ।
 
हर दिन प्रजा से कह रहा है, "जागते रहो"
राजा हमारा ख़ुद ही सावधान नहीं है ।
 
गिर नहीं गए है ये और बात है
वैसे तो किस क़दम पे इम्तहान नहीं है ।
 
फाकाकशी में जी रहे है लोग आजकल
पूरा ही साल तो कोई, रमजान नहीं है ।
 
एक आदमी के पास, ऐशगाह हैं कई
दूसरे के पास क्यों मकान नहीं है ।