भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चुपक-चुपके आकर ऐसे ख़्वाब सजाया है उसने / शमशाद इलाही अंसारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:11, 31 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशाद इलाही अंसारी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> चुपके चुप...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुपके चुपके आकर ऐसे ख़्वाब सजाया है उसने,
बस आँखों ही आँखों में ये राज़ बताया है उसने।

ख़ुशबुओं से भर गया उसका बदन मेरे छू लेने से,
सहम गया है बसंत, बहारों को भी शर्माया उसने।

वो यकायक उसका पलटकर देखना कि जैसे देखा ही न हो,
इश्क की इन मासूम अदाओं को कैसे सीख लिया है उसने।

"शम्स" तेरी छत पर अब बेशुमार बादलों का डेरा है,
इतना बरसा है पानी सावन को भी तरसाया है उसने।


रचनाकाल: 31.10.2002