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चुपक-चुपके आकर ऐसे ख़्वाब सजाया है उसने / शमशाद इलाही अंसारी
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चुपके चुपके आकर ऐसे ख़्वाब सजाया है उसने,
बस आँखों ही आँखों में ये राज़ बताया है उसने।
ख़ुशबुओं से भर गया उसका बदन मेरे छू लेने से,
सहम गया है बसंत, बहारों को भी शर्माया उसने।
वो यकायक उसका पलटकर देखना कि जैसे देखा ही न हो,
इश्क की इन मासूम अदाओं को कैसे सीख लिया है उसने।
"शम्स" तेरी छत पर अब बेशुमार बादलों का डेरा है,
इतना बरसा है पानी सावन को भी तरसाया है उसने।
रचनाकाल: 31.10.2002