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चैन-ओ-सुकूँ गँवा दे, दौलत न ऐसी देना / पल्लवी मिश्रा

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चैन-ओ-सुकूँ गँवा दे, दौलत न ऐसी देना,
नाकाबिले बयाँ हो, हालत न ऐसी देना।

दिल तो है नासमझ ही, कई ख़्वाहिशें करेगा,
रह जाए जो अधूरी, चाहत न ऐसी देना।

मुहब्बत में सर उठाकर जीने की है तमन्ना,
रुसवाई हो जहाँ में, उल्फत न ऐसी देना।

मसरूफियत में हम भी गमे तन्हाई भूल जायें,
हर लम्हा काट खाये, फुरसत न ऐसी देना।

दुनिया में कम नहीं हैं, शोहरत से जलने वाले,
हो ग़मजदा ज़माना, शोहरत न ऐसी देना।

उसूलों की रह गुजर पर ताउम्र चलते जायें,
ईमान डगमगाये, नीयत न ऐसी देना।