भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छाँह छलकि के गिरल डाल से / केदारनाथ मिश्र 'प्रभात'

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:56, 29 सितम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ मिश्र 'प्रभात' |अनुवादक= |...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

छाँह छलकि के गिरल डाल से
पात-पात तूफान बन्द बा
बादल झुकल कि झील-छंद बा
स्वर, सुर, अलंकार
सब के सब सुलग उठी
तू छुअ ज्वाल से
छाँह छलकि के गिरल डाल से
फूल बयार जवा के लोढ़े
सँस जेकाहें के पट ओढ़े
राति काल्हु के
साँझि आजु के
देखत बानी
उषा काल से
छाँह छलकि के गिरल डाल से