भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
छायाभास / जगदीश गुप्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:33, 14 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जगदीश गुप्त |संग्रह= }} <Poem> बचपन में काग़ज़ पर स्...)
बचपन में
काग़ज़ पर
स्याही की बूंद डाल
कोने को मोड़ कर
छापा बनाया
जैसा रूप
रेखा के इधर बना,
वैसा ही ठीक उधर आया।
भोर के धुंधलके में
ऎसी ही लगी मुझे
छतरीदार नाव के
साथ-साथ चलती हुई छाया ।