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छाव जी मूं सां ॻाल्हि न करि / श्रीकान्त 'सदफ़'

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छांव जी मूं सां ॻाल्हि न करि
छांव मूंखे
ऊंदहि जो अहसासु कराईन्दी आ
मां उस जो क़ाइल आहियां
उस मूंखे
तकलीफ़ पिए ॾिनी आहे
पर
अकेलाईअ खां बचायो अथाईं
हिकिड़ो पाछो
मूं सां गॾो गडु हलण लॻन्दो आ...।