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छुटतय सभे के परान / सिलसिला / रणजीत दुधु

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मानवता से भेंट कहँय नय तइयो हमरा जीना हे
दिल के टुकड़ा-टुकड़ा हो गेल रो-रो के अब सीना हे

जनता भी हे रिस्ता नाता सभे के सभे दरक रहल
भाइए के भाय हत्यारा हे माय-बेटा भी फरक रहल

चंद सिक्का के चलते देखऽ लछमी लहके घर में
खिजाब लगल बूढ़ा के देखऽ नाम लिखयले वर में

खुशी मनावे के ढं़ग में अब तो मुरगा आउ शराब हे
जे ई सब से परहेज करे अखने ऊहे सबसे खराब हे

चोर डाकू सब नेता हो गेल जाके देहे सगरो भाषन
जातीय दंगा करा-करा के चला रहल हन सासन

कौवन सभे के कुरसी मिलल हंसन बनगेल दास
भेड़िया रच्छक बनके अखने फइलइले हे त्रास

सोना के लंका भसम होल जब एक सीता के हरलक रावन
अविरल अबला के लोर से अब लजा रहल हन सावन

छले कपट के दलदल में जीना हे तऽ काहे के गम
जखने परान छुटान हे छुटे साधले रहम अब दम

अपने धनुस से छोड़ल आके लगतय अपने बान
सब हावा जब जहरीला होतय छुटतय सभे के परान