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छोटू हूँ न इसीलिए तो / दिविक रमेश
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क्या जाता है अरे किसी का
अगर सोच लूँ ऐसे-वैसे।
सोचूं जो पुस्तक में रहता
पाठ पैन में आता कैसे?
बड़े शान से यही बात जब
मैंने पापा को बतलाई।
हँसे जोर से गाल थपककर
बात मुझे कुछ यूं समझाई।
’अरे पाठ पुस्तक में रहता
जिसे दिमाग वहां से लेता
और पैन से उगल उगल कर
कागज पर उसको लिख देता’।
छोटू हूँ न इसीलिए तो
बात न समझा इतनी सी मैं।
एक बार पापा बन जाऊं
बात करूंगा कितनी ही मैं।
पर पापा कम्यूटर पर तो
पैन उंगलियां बन जाती न?
हाँ यह बात पतेकी की है
बात ठीक से समझ गए न?