भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जंगल को गाने दो / सुधा गुप्ता

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:45, 22 अप्रैल 2012 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुधा गुप्ता }} Category:हाइकु <poem> 1 मनमौज...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


1
मनमौजी है
जंगल को गाने दो
अपना गीत
2
हरे पन्ने पे
रचते आरण्यक
ये वन -ॠषि
3
इन्हें न काटो
पावन वेद-ॠचा-
सी यह सृष्टि
4
ममतामयी
जड़-चेतन प्रति
वत्सल दृष्टि
5
तृषा बुझाने
इनके कारण ही
होती है वृष्टि
6
गीत बुनती
गहरे सन्नाटे में
कोई गौरैया
7
बोल उठता
अचानक मस्ती में
वो पपीहरा
8
असंख्य जीव
पाते हैं संरक्षण
इनकी गोद
9
कस्तूरी मृग
निर्भय विचरण
मनाते मोद
10
मत उजाड़ो
सबको कुछ देता
कुछ न लेता
11
कभी न छीनो
वन्य जीवों का घर
भू रही चेता
12
स्वाधीन ,मुक्त
स्वयं की मस्ती डूबा
सबका मीत
13
आत्मविभोर
प्रभु-भक्ति में लीन
सबसे प्रीत
14
मनमौजी है
जंगल को गाने दो
अपना गीत
-0-