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जब-जब मुश्किल आई मैं दिल को, दिल मुझको समझाता है / दरवेश भारती
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जब-जब मुश्किल आई मैं दिल को, दिल मुझको समझाता है
इक-दूजे का ही तो सहारा वक़्त पर काम आ जाता है
राहे-वफ़ा में जाने-वफ़ा का साथ न जब मिल पाता है
' सात समन्दर पार का सपना, सपना ही रह जाता है
जिनके सहारे बीत रहा है यह संघर्ष-भरा जीवन
लम्हा-लम्हा उन यादों का तन-मन को महकाता है
कितनी अन्ध गुफाओं में हम चाहे क़ैद रहें, फिर भी
याद किसी की आते ही यह अँधियारा छँट जाता है
जीवन और मरण से लड़ने, बीच भँवर जो छोड़ गया
सोच के जाने क्या वह मेरी सिम्त खिंचा क्यों आता है
जितनी भी औक़ात जहाँ में होती है जिस इन्सां की
मालिक भी उसपर उतना ही रह्मो-करम बरसाता है
कोई जोगी हो वैरागी या हो संन्यासी 'दरवेश'
भूल स्वयं को जाता है जब मन्मथ रंग दिखाता है