Last modified on 11 मार्च 2011, at 10:47

जब गुरु ने मेरे विरुद्ध मिथ्या कहा / गणेश पाण्डेय

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:47, 11 मार्च 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गणेश पाण्डेय |संग्रह=अटा पड़ा था दुख का हाट / गणे…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कोई पत्ता नहीं खड़का
मंद-मंद मुस्काता रहा पवन
आसमान के कारिंदों ने
लंबी छुट्टी पर भेज दिया मेघों को
जब गुरु ने मेरे विरुद्ध मिथ्या कहा ।

अद्भुत यह कि
पृथ्वी पर भी नहीं आई कोई खरोंच ।