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जब तुम अपनौ मौ खोलत हौ / महेश कटारे सुगम
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जब तुम अपनौ मौ खोलत हौ
आपस में नफरत घोरत हौ
जहर उगलवे दूध प्या रये
सांपन खौं पालत पोसत हौ
पैलें आग लगात घरन में
फिर पानी लैवे दौरत<ref>दौड़ना</ref> हौ
झूठी मूठी बस बातन सें
बादर के तारे टोरत हौ
अपनी शकल सुधारत नईंयाँ
तुम तौ ऐना<ref>आईना</ref> खौं कोसत हौ
बादर देख पियत पानी के
सुगम पोतलन<ref>ठण्डे पानी का मिटटी का बना बर्तन</ref> खौं फोरत हौ
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