भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जब से कान्हा की बंशी बजी / नवीन कुमार सिंह

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:37, 18 दिसम्बर 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नवीन कुमार सिंह |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जब से कान्हा की बंसी बजी
राधा भई बावरी
ऐसी अद्भुत छबीली छवि
राधा भई बावरी

छोड़ा अपना सदन
वो तो पैदल मगन
भूल तन वृंदावन में चली
होठ पर सुर तिरे
आँख अश्रु भरे
मिलने अपने सजन से चली
अब सुध बुध की किसको पड़ी

राधा भई बावरी
जब से कान्हा की बंसी बजी
राधा भई बावरी

धरती आकाश से
मिल रही थी गले
पेड़ पौधे हरे हो गए है
ऐसा अद्भुत मिलन
देख हर्षाया मन
देवता सब खड़े हो गए

मोर पंखों के संग सांवरी
राधा भई बावरी
जब से कान्हा की बंसी बजी
राधा भई बावरी

कान्हा मुझमे भी है
राधा तुझमे भी है
है हकीकत ये सबसे बड़ी

पर हो कैसे मिलन
पहले पावन हो मन
तब ही आएगी ऐसी घड़ी

प्रीत की शक्ति सबसे बड़ी
राधा भई बावरी
जब से कान्हा की बंसी बजी
राधा भई बावरी