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जल चुकी है फ़स्‍ल सारी पूछती अब आग क्या / गौतम राजरिशी

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जल चुकी है फ़स्‍ल सारी पूछती अब आग क्या
राख पर पसरा है "होरी", सोचता निज भाग क्या

ड्योढ़ी पर बैठी निहारे शह्‍र से आती सड़क
"बन्तो" की आँखों में सब है, जोग क्या बैराग क्या

खेत सारे सूद में देकर "रघू" आया नगर
देखता है गाँव को मुड़-मुड़, लगी है लाग क्या

चांद को मुंडेर से "राधा" लगाये टकटकी
इश्क के बीमार को दिखता है कोई दाग क्या

क्लास में हर साल जो आता था अव्वल "मोहना"
पूछता रिक्शा लिये, ‘चलना है मोतीबाग क्या’

किरणों के रथ से उतर क्या आयेगा कोई कुँवर
सोचती है "निर्मला", देहरी पे कुचड़े काग क्या

जब से सीमा पर हरी वर्दी पहन कर वो गये
घर में "सूबेदारनी" के क्या दिवाली फाग क्या

{मासिक वागर्थ, अक्टूबर 2009 और मासिक हंस, मार्च 2010}