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जसोदा तेरे लाला ने / ब्रजभाषा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जसोदा तेरा लाला ने मेरी दीनी है मटुकिया फोर॥ टेक
अरे याने बैंया मेरी झटकी, सिर पै से मटकी पटकी।
मेरे यही जिगर में खटकी।

दोहा- मटकी डारी फोर कर, माखन दयौ बिगार।
गैल रोक ठाड़ो भयौ, जाने बादर डारे फार॥
मोय अकेली जान के कान्हा दिखावे जोर।ज.
याकू जोर ब्रज कौ भारी, अरे मोय दीनी लाखन गारी।
जाने बहुत करी मेरी ख्वारी।

दोहा- ख्वारी अति भारी, करी मन में करूँ विचार।
दिल गोता खाता मेरा, पड़ा हुआ मझधार॥
कहाँ करूँ कित जाऊँ अरे जाने कर-कर डारी तोर॥ ज.

कहूँ कंस राजा से मैं जाय, अरे जाय लेगौ पकरि मँगाय।
वाय सब हाल कहूँ समझाय।

दोहा- समझा कर सब हाल मैं, कान्हा लऊँ बुलाय।
मार लगावै बाँस से, सब मालुम पड़ जाय॥
है सब को मालूम अरे ये है माखन कौ चोर॥ ज.