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जहाँ बर्फ की निर्मम परती रहती है / विनय कुमार
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जहाँ बर्फ की निर्मम परती रहती है।
मित्र, वहाँ भी अपनी धरती रहती है।
पर्वत-पर्वत पर बिछता रहता अपना जल
जब भी उसकी ऊष्मा मरती रहती है।
अम्मा के सपने में आँधी आती थी
बेटी आँधी के कष भरती रहती है।
सन्नाटे मिलते हैं शोर शराबे में
तनहाई तो बातें करती रहती है।
कल से कल तक जाती हुई सदानीरा
जाने क्यों प्यासों से डरती रहती है।
विद्वानों को हज़म न होगी वे घासें
जिन्हें ग़ज़ल बकरी सी चरती रहती है।
रिसता रहता है सुरंग में मीठा जल
और ट्रेन सी प्यास गुज़रती रहती है।