भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िक्र हर सुब्ह ओ शाम है तेरा / शाकिर 'नाजी'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:28, 14 जुलाई 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शाकिर 'नाजी' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}‎ <poem> ज...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िक्र हर सुब्ह ओ शाम है तेरा
विर्द-ए-आशिक कूँ नाम है तेरा

मत कर आज़ाद दाम-ए-जुल्फ़ सीं दिल
बाल बाँधा ग़ुलाम है तेरा

लश्‍कर-ए-ग़म ने दिल सीं कूच किया
जब से इस में मक़ाम है तेरा

जाम-ए-मय का पिलाना है बे-रंग
शौक़ जिन कूँ मुदाम है तेरा

आज ‘नाजी’ से रम न कर ऐ शोख़
देख मुद्दत सीं राम है तेरा