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ज़िन्दगी में जब भी रात भर भर आई है / शमशाद इलाही अंसारी
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ज़िन्दगी में जब भी रात भर भर आई है
बस तेरी यादों ने कोई रोशनी दिखाई है|
जाने कब आँख लगी, यादों के दीये जलते रहे,
रोशनी घुलती रही, ख्वाबों में तेरी महक आई है।
कभी थम गई, कभी झुक गई, कभी दर्द से कराह गई
तेरी चाह ने मेरी जीस्त की ये क्या हालत बनाई है।
कई दर दिखे, कई रास्ते, कई मंज़िलों ने पुकारा मुझे
तेरी एक झलक के बाद, मुझे न कोई सूरत सुझाई है।
"शम्स" के अहसास में कोई आस है छुपी हुई
तेरी राह की तलब ने कहीं कोई कली चटकाई है।
रचनाकाल : 23.11.2002