भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी में जब भी रात भर भर आई है / शमशाद इलाही अंसारी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:40, 21 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शमशाद इलाही अंसारी |संग्रह= }} Category: कविता <poem> ज़िन...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िन्दगी में जब भी रात भर भर आई है
बस तेरी यादों ने कोई रोशनी दिखाई है|

जाने कब आँख लगी, यादों के दीये जलते रहे,
रोशनी घुलती रही, ख्वाबों में तेरी महक आई है।

कभी थम गई, कभी झुक गई, कभी दर्द से कराह गई
तेरी चाह ने मेरी जीस्त की ये क्या हालत बनाई है।

कई दर दिखे, कई रास्ते, कई मंज़िलों ने पुकारा मुझे
तेरी एक झलक के बाद, मुझे न कोई सूरत सुझाई है।

"शम्स" के अहसास में कोई आस है छुपी हुई
तेरी राह की तलब ने कहीं कोई कली चटकाई है।


रचनाकाल : 23.11.2002