भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ज़िन्दगी से न कुछ गिला करना / अशोक 'मिज़ाज'

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:36, 1 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक 'मिज़ाज' |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKC...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ज़िन्दगी से न कुछ गिला करना,
हर मुसीबत का सामना करना।

जब सफ़र ही सफ़र की मंजिल है,
सुब्ह का इंतज़ार क्या करना।

मंज़िलें ख़्वाब बनके रह जायें,
इतना बिस्तर से प्यार क्या करना।

मेरे हिस्से में चंद ग़ज़लें हैं,
क़ाग़जों का हिसाब क्या करना।