भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाके उर उपजी नहिं भाई / दरिया साहब

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:25, 6 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= दरिया साहब }} Category:पद <poeM> जाके उर उपजी नहिं भाई। स...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जाके उर उपजी नहिं भाई।
सो क्या जाने पीर पराई॥

ब्यावर जानै पीर की सार।
बाँझ नार क्या लखै बिकार॥

पतिव्रता पति को व्रत जानै।
बिभचारिनि मिल कहा बखानै॥

हीरा पारख जौहरी पावै।
मूरख निरख कै कहा बतावै॥

लागा घाव कराहै सोई।
कोतगहार के दरद न कोई॥

रामनाम मेरा प्रान अधार।
सोई रामरस पीवनहार॥

जन 'दरिया' जनैगा सोई।
(जाके) प्रेम की माल कलेजे पोई॥