भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाग जाग नरसिंह बीर बाबा / गढ़वाली

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:57, 6 सितम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=गढ़वाली }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जाग जाग नरसिंह बीर बाबा,
रूपा को तेरो सोटा जाग, फंटिगू की तेरी मुद्रा जाग,
डिमरी रसोया जाग, केदारी रौल जाग!
नेपाल तेरो चिमटा जाग, खरुबा की तेरी झोली जाग!
तमा की पत्री जाग, सतमुख तेरो शंख जाग!
नौं लड्या चाबुक जाग, ऊर्दमुखा तेरो नाद जाग।
गुरु गोरखनाथ का चेला जाग,
पिता भस्मासुर माता महाकाली जाग!
लोह खम्ब जाग। जागरन्तो होई जाई बीर बाबा नरसिंह।
वीर तुम खेला हिण्डोला! वीर उच्चा कैलासू,
हे बाबा तुम खेला सोवन हिंडोला!
हे वीर तुम मारा झकोरा! अब चौद भुवन मा,
हे वीर तीन लोक पृथि, सातौं समुद्र बाबा।
हिण्डोलो घूमद घूमद चढ़े बैकुण्ठ सभाई। बीर इन्द्र सभाई,
तब देवता जागदा होई गैन, लौंदन फूल किन्नरी।
शिव जी की सभाई पेंदन भाँग की कटोरी,
सुलपा की रौंण पेन्दन-राठ वाली भाँग।
तब लैग्या भाँग का झकोरा।
तब जाँदू बाबू कविलासी गुम्फा
जाँदू गोरख सभाई, जाँदू बैकुंठ सभाई!

शब्दार्थ
<references/>