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जाड़े की ठंड
इतनी भयानक होती है कि
कि जम जाते हैं हाथ कभी
तो कभी पैर पाला खाते हैं
और उदासी
भेदती चली जाती है हमेशा
दिल को गहराई तक
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जाड़े की ठंड
इतनी भयानक होती है कि
कि जम जाते हैं हाथ कभी
तो कभी पैर पाला खाते हैं
और उदासी
भेदती चली जाती है हमेशा
दिल को गहराई तक