भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जादूगर / सुनील श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:18, 18 जुलाई 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनील श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जादूगर जादू दिखा रहा था
रूमाल को तोता
तोते को खरगोश बना रहा था
लोग ताली बजा रहे थे
लोग पैसे लुटा रहे थे

तभी एक आदमी
चढ़ आया मंच पर
मारा तमाचा जादूगर को खींचकर
बोला —
साले, बेवकूफ बनाते हो !
हाथ की सफ़ाई दिखा
जनता को फुसलाते हो !
मेहनत मजूरी का पैसा
ठगकर ले जाते हो !

जाओ, भागो,
यहाँ से जाओ
सही जगह पसीना बहाओ
पहले उपजाओ, फिर खाओ

कथा सुनने वालो,
अब तुम बताओ
अनुमान लगाओ
आख़िर क्या हुआ होगा

क्या रोनी सूरत बना
जादूगर चल दिया होगा
या माँग ली होगी माफ़ी
खाई होगी कसम
फिर न किसी को ठगने की
नहीं, साहब, नहीं
ऐसा कुछ ना हुआ
आख़िर जादूगर ने फिर
एक जादू किया
उसने ग़ायब कर दिया आदमी को
वह आदमी अभी तक लापता है
और कारोबार जारी है
जादूगर का ।