भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जान बहार दहार बहो रे / संत जूड़ीराम

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:09, 29 जुलाई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संत जूड़ीराम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जान बहार दहार बहो रे।
डूबो जक्त भक्त बिन चीन्हें बिन जल मीन अधीन मरो रे।
ज्यौं रवि नीर मिरग की ममता मिलहिं न जल खल जीव गयो रे।
बिनु गुरु संध अंध मत डोलत सत्त असत्त न चीन परो रे।
छूटो लाल माल गाढ़ी सें ऐसों रतन बिजनर करो रे।
बिनु गुरु कृपा पार नहिं लागो जूड़ी या जग सार गहो रे।