भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जाने क्या कुछ है आज होने को / ज़फ़ीर-उल-हसन बिलक़ीस
Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 06:52, 22 अक्टूबर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़फ़ीर-उल-हसन बिलक़ीस }} {{KKCatGhazal}} <poem> ज...' के साथ नया पन्ना बनाया)
जाने क्या कुछ है आज होने को
जी मिरा चाहता है रोने को
एक उम्र और हाथ क्या आया
ज़िंदगी क्या मिली थी खोने को
आबलों से पट पड़े हैं हम
कोई निश्तर भी दे चुभोने को
दीदा-ए-तर भी आज खो आए
उस के आगे गए थे रोने को
रेत मुट्ठी में भर के बैठे हैं
हाथ में कुछ रहे तो खोने को
अपनी हस्ती का हाल क्या कहिए
हम हुए आह कुछ न होने को
कितने सादा हैं हम कि बैठे हैं
दाग़-ए-दिल आँसुओं से धोने को