भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जिन्दगी भी कमाल करती है / गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:34, 8 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जिन्दगी भी कमाल करती है।
उम्र भर देखभाल करती है।।
कोशिशों में कमी नहीं रखती,
हर जतन से सँभाल करती है।।
हार कर भी न बैठती चुप है,
फिर सँभल कर धमाल करती है।।
जूझने का शऊर गर है तो,
नेमतों से निहाल करती है।।
जोश-हिम्मत का साथ मिल जाये,
काम फिर बेमिसाल करती है।।
देख कर रूह काँपती फिर भी,
मौत से कदमताल करती है।।