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जिन्दगी भेट्ने ठेगाना पायौ ? / राजेश्वर रेग्मी

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जिन्दगी भेट्ने ठेगाना पायौ ?
सहरबाट हिंड्ने रमाना पायौ ?

दशौं दिनसम्म भोकभोकै बसेर
बल्ल एक दिनको खाना पायौ !

एक्लो त शायद परेनौ होला
साथमा दुई, चार– एक जाना पायौ

भीडमा भो, कैदी बाँच्तिनँ भन्थ्यो
भागको त्यो चुहुने छाना पायौ

कहिले त हार, जीत भै दिन्छ
चित्त बुझाउने बाहना पायौ