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जिस तरह आदमी की तबीयत ख़राब हो जाती है / चन्द्र

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जिस तरह आदमी की तबीयत ख़राब हो जाती है
ठीक उसी तरह कभी-कभार
देश की तबीयत ख़राब हो जाती है

जिस तरह आदमी की तबीयत ख़राब होने के बाद
उस आदमी की देह के अँग-अँग से धधकती हुई
आग की लूत्तियाँ चिंगारियां उड़ने लगती हैं
और पुर्जे-पुर्जे के भीतर
एक अजीब बेचैनी
एक अजीब छटपटाहट
और कुछ आँसू की नमी
कुछ ख़ून की कमी
कुछ कमज़ोरियाँ
हो जाती हैं

उसी तरह समय के हेर-फेर से
देश की तबीयत ख़राब होने के बाद
देश की देह के पुर्जे-पुर्जे के भीतर
कभी जलन
कभी ठण्डक
महसूस होने लगती है
दिखने में लगती है साफ़-साफ़
देश की हज़ारों जोड़ी लाल-लाल अँखियों में !

लेकिन कभी-कभी
आदमी की तबीयत
बहुत ख़राब हो जाती है, बहुत खराब !

इतनी ख़राब तब हो जाती है
जब उस बेबस आदमी के पास
एक फूटी कौड़ी भी न रहती है
किसी भी अस्पताल में इलाज कराने हेतु
न ख़ुद के दम पर कमाने की जाँगर रहती है
कि नून रोटी भी खा सके
कि बना सके बरखा-बुन्नी से चूती हुई झोपड़ियाँ
कि ख़रीदकर कफ़न भी
नँग-धड़ँग तन को ढक सके !..

और इस तरह वह बीमार आदमी
गम्भीर, भयावह और खतरनाक रोग-शोक
घोर दुख के अन्धेरे,
बहुत अन्धेरे कुआँ जैसी गुफ़ाओं-कन्दराओं में कहीं
चुपचाप मरने लगता है धीमी मौत

मरते हुए
करने लगता है ख़ून की अल ल ल ल् उल्टियाँ

और कुम्हलाते छटपटाते कराहते चीख़ते मिमियाते
घिघियाते
केवल मुट्ठी भर कृशकाय देह लिए वहीं कहीं
बंजर भूमि पर दम तोड़ देता ,है बिचारा !

जिसकी बदबू देती हुई मुर्दा लाश पर
घृणा-नफ़रत की देसी-विदेशी-पड़ोसी मक्खियाँ
भिनभिनाने लगती हैं इधर-उधर...।