भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जिस दिन तुम जाओगी / संजय शाण्डिल्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:31, 17 फ़रवरी 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय शाण्डिल्य |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जिस दिन तुम जाओगी
उस दिन भी मैं तुम्हारे साथ रहूँगा
बात ऐसे करूँगा
जैसे हम केवल दोस्त रहे इतने दिन
देखूँगा भी इस तरह
जिस तरह औरों को मैं देखा करता हूँ

जिस दिन जाओगी
उस दिन एकदम नहीं पूछूँगा
कि तुम्हारे बग़ैर
अब कैसे कटेगा समय का पहाड़
सागर अपार एकाकीपन का
कैसे पार होगा
जंगल तुम्हारे न होने का
कैसे रौशन होगा एकदम नहीं पूछूँगा

जिस दिन जाओगी
उस दिन भी
मेरे होंठों पर वही मुस्कान होगी
जिस पर तुम फ़िदा रहीं अब तक
और तुम्हारे फ़िदा होने के अन्दाज़ पर
शायद मैं भी फ़िदा रहा

उस दिन
तुम्हारे जाने के बाद
सब एक-एक कर
मेरी ओर देखेंगे और पाएँगे
मैं तब भी कमज़ोर नहीं हुआ हूँ

हालाँकि
तुम यह जानती हो
और बेहतर जानती हो
कि एकदम कमज़ोर क्षणों में
मैं बेहतरीन अभिनय करता हूँ ।